हमारे गुरुजी एक कहानी सुनाते थे, डॉ शुक्ला की. बड़े नामचीन सर्जन थे. अपने या अपने अपनों को चिरवाने की नौबत भगवान ना लाए पर अगर ऐसी नौबत आती तो लोग डॉ.शुक्ला के हाथों पर ही विश्वास करते.20 साल की बेहतरीन और मानवता को समर्पित सेवा के बाद आखिरकार वह दिन आ ही गया जब एक ऑपरेशन के दौरान उन्होंने एक मरीज़ के पेट में कैंची छोड़ दी. पता चलने के बाद फिर से ऑपरेशन किया और कैंची निकल आई. पर डॉ शुक्ला नहीं निकल पाए, अपनी नई छवि से. अब जब लोग उनका परिचय देते तो कहते वही डॉ.शुक्ला जो मरीजों के पेट में कैंचियां छोड़ देते हैं. मरीजों और कैंचियां, बहुवचन पर गौर कीजिए. और छोड़ देते हैं, न कि छूट गई थी एक बार. सर्जरी के लिए मशहूर आदमी, कैंचियां छोड़ने के लिए बदनाम हो गया. साल में एक गलती नहीं. एक गलती और बीस साल पर बीस पड़ी. सत्य और छवि, कद और साए में इतना इतना क्रूर अंतर.
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