Tuesday, August 13, 2013

बड़ा आसान होता है एक नजर, दो लफ्जों और चार दिनों में राय बना लेना.. लेकिन क्या बेहतर न होता अगर तुम मेरे बारे में अपनी राय बनाने से पहले कम से कम दो क़दम मेरे साथ चल कर देखते.. मुझसे एक बार पूछ कर देखते.. मेरी जिंदगी, मेरी खुशियाँ और ग़म, मेरी दुविधाएं और परेशानिया, मेरे दर्द और अहसास समझने की एक बार कोशिश तो करते.

याद रखना तुम कि "कहानी हर किसी की होती है"..

फर्क बस इतना है कि कुछ कहानियाँ अपने निशां होठों पर छोडती हैं, तो कुछ सूखी लकीरें गालों पर.. अब इसमें मेरा क्या दोष अगर मेरा पूरा चेहरा ही स्याह है.

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