Friday, September 20, 2013

गुजरात दंगो का सच (मनगड़ंत) तो छाती ठोक के दिखा देती है मीडिया लेकिन असम दंगा, मुज़फ्फरनगर दंगो को नाम देती है जातीय तनाव, ये कैसा समाज का आइना है जो देखता कुछ है दिखता कुछ है ! गुजरात में मरे वो थे मुस्लिम और असम,मुज़फ्फरनगर में मरने वाले होते है अल्पसंख्यक, ये कैसी दोहरा मापदंड है मीडिया का ?
विकास के, भ्रष्टाचार के, समाज के सारे मुद्दों को बगल में रख रात दिन मीडिया आसाराम बापू के पीछे पड़ी है, अगर वो गुनाहगार है तो उनको सजा जरुर मिलनी चाहिए लेकिन ये क्या की तुम समाज को ही गुमराह करते फिरो, अभी आज ही आजतक न्यूज़ फ़्लैश करता है की आसाराम को क्यों चाहिए महिला वैध वो भी दो घंटे के लिए ? क्या ये तरीका सही है एक जिम्मेवार नेशनल न्यूज़ पे इस तरह की न्यूज़ प्रसारित करने का ? 
रही बात Trigeminal_neuralgia नामक बीमारी की तो क्यों नहीं हो सकती वो किसी को ? खुद मेरे घर में एक मरीज़ है इस बीमारी का !

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